क्या सौदेबाज़ी है !!
ये करो तो वो मिलेगा… अरे, हम तुम्हारे लिए ये सब कर रहे हैं और तुम इतना नहीं कर सकते !… हमने तुम्हे सब कुछ करने की आज़ादी दी, तुम ये भी नहीं सुनोगे?… तुम्हे इतना पढ़ाया लिखाया इसी दिन के लिए? कि तुम हमे जवाब दो… वो भी इस तरह ? तुम्हे कभी बेटी नहीं समझा… एक लड़के की तरह पाला पोषा हमने… और अब तुम कहती हो कि हमारी मर्ज़ी से शादी नहीं करोगी!!… गलती की तुम्हे पढ़ा कर , सर पे चढ़ाकर। ……
अरे शुक्ला साहब के बच्चो को देखो , कोई व्यवस्था नहीं, फिर भी उनके बच्चे आज कहाँ कहाँ है… तुम लोगो को क्या कमी की, सारी सुविधाएँ दी..कोचिंग, फीस, गाडी, मोबाइल, लैपटॉप सब कुछ। कहाँ कमी की?…पर तुम गधे के गधे ही रह गए'…
ऐसी बहुत सी बातें हम सबने सुनी हैं अपने घर में। अपनी अपनी उम्र और तजुर्बे के हिसाब से किसी ने सुनी होगी तो किसी ने सुनाई होगी।
मैं उसके साथ अच्छे से BAHAVE करती/करता हूँ, पर वो क्यों नहीं करती/करता ? मैंने उससे प्यार किया, वो क्यों नहीं करता/करती? सर झुका के रहो, मैं हमेशा सरल रहूँगा/रहूंगी। …तुम मुझसे अच्छे से बात करोगे तो मैं भी अच्छे से बात करूँगा/करूंगी। तू अच्छा तो मैं भी अच्छा। … ऐसी भी कई बड़बोलियाँ लोग सुनाते रहते हैं. ज़रा कोई उनसे पूछे यही बात सामने वाला आपसे कहे तो? अरे भाई वही पहले क्यों झुके, वही पहले अच्छा क्यों रहे? तुम्हे ये पहले याद आया तो तुम रहो पहले। पर ना जी, ऐसा तो कही होता ही नहीं। हर जगह सौदेबाजी। मैं करवाचौथ का व्रत रहूंगी तो मुझे क्या मिलेगा? मैं तुमसे प्यार करूँ तो मुझे क्या मिलेगा?
कुछ की सौदेबाजी चलती है की हम तुम्हे पढ़ने देंगे, पर तुम शादी अपनी मर्ज़ी से नहीं कर सकती। हम तुम्हे बाहर भेजेंगे अपने शहर से, पर तुम अपनी हमारी संस्कृति नहीं भूलोगी। कुछ गलत* नही करोगी। वगैरह वगैरह।
कही पैसों की सौदेबाजी तो कही भावनाओं की। पैसे तो चलिए सौदे के लिए ही बने हैं पर भावनाओं का क्या? हम हर दिन इन्हे खरीदते और बेचते रहते है। कितनी दफे वो मरते और जीते हैं। कितनी बार वो आंसुओं संग बह कही सूख जाते हैं और कई मर्तबा वो जुबां पे कड़वाहट बन सौदों को खराब कर देते हैं। हम अपने फायदे नुक्सान के मुताबिक इन सौदेबाजी का हिस्सा बनते हैं। इन सौदों को कभी प्यार का नाम दे हम चुप करा दिए जाते हैं तो कभी ज़िम्मेदारी तो कभी हमारा कर्त्तव्य। कभी रो के सौदा कर लेते हैं अपनी ज़िन्दगी का कि यही PRACTICALITY हैऔर कभी हस के कि किसी को मेरी हसी पसंद है शायद।
वो कहते सर झुका के चल
शर्म दिखती है झुकी पलकों में
पर हम क्या करे
जो हमे दिन में भी तारे ढूढ़ने का शौक चढ़ा
वो कहते थोड़ा थम के कदम रख
मर्यादा झलकती है सादगी में
पर हम क्या करे
जो हमें मर्दानी बनने का शौक चढ़ा
वो कहते मन्दम् मुस्कराहट ही सही
शालीनता झलकती है उसमे तेरी
पर हम क्या करे
जो हमें खुल कर हसने का शौक चढ़ा
वो कहते तो बहुत कुछ
हमें सँभालने का बोझ जो उन पर है
पर हम क्या करे
जो हमें सौदेबाजी का शौक न रहा
आज ये लिखते लिखते मैं भी अपनी ज़िन्दगी में हुए कुछ सौदों को सोच, उन्हें अच्छा या बुरा में तौलने लगी। खैर, अब विदा लेना चाहूंगी। आज कुछ सौदे मैंने भी किये है उम्मीद है इन सौदों को मैं उनके उद्देश्य की आड़ में इंसाफ दे पाऊँ।
PS- बस कभी खुद के दिल से सौदा मत कीजियेगा और न ही उन दिलों से जिन्हे आप अच्छे लगते है।
और तो सौदेबाजियां चलती रहनी चाहिए। तभी तो बाजार गर्म रहेगा ,शोर मचता रहेगा।
शुक्रिया !!
खुश रहिये ! मुस्कुराते रहिये !!
Comments
keep it up.
Kai kya...aksar saude uddyeshya prapti ke liye hi kiye jate hai. bas 'uddyeshya ki aand me' is shabd ka dwesh bhaav kam ho jata hai.:-)
dhanyawaad simran:-)
ki zindagi ko chaha janna 'haan' 'naa' k daayre me
har dafe rang badal gayi wo
ab humne bhi chor diya
inka sath...
behrupiye kam bhate hai mujhe
accha hai..
.
isi bahaane aap mitro se baatein hoti rahegi.:-)
:-)