कि मेरे अंदर ईगो बहुत है, मुझे गुस्सा बहुत आता है, मुझे नहीं पसंद कि कोई मुझे मना करे किसी बात पर, बेशक बेतुकी बात पर ना ही मिलनी चाहिए. अपनी सफाई में कह दूँ कि मैं बेतुकी ज़िद कम ही करती हूँ। अपनी कमियों पर डर जाती हूँ अब।  और ये डर बड़ा अजीब लगता है  क्युकी ये डर किसी के दूर चले जाने का है कि वो मेरी आदतों से परेशान हो मुझसे दूर चला जायेगा।  अजीब है न ये डर। मैं इन दिनों अक्सर लोगो में ये डर  देखती हूँ। और तब तसल्ली होती है कि कुछ रिश्ते है जो आपके साथ हमेशा रहेंगे भले ही पास न हो। वो रिश्ता है माता पिता का।  वो कहीं नहीं जायेंगे हमे आपको छोड़कर। मैं आप हम सभी कभी न कभी अपने बनाये रिश्तो को खो देने का डर  लिए सहमे होते है।  आज किसी ऐसे ही डर को सामने देखा तो माँ याद आ गयी। कि कभी ये डर उनके साथ नहीं लगा, उनके लिए नहीं लगा।  और यही सोचते सोचते चेहरे पर एक तसल्ली के साथ हसी दौड़ पड़ी और मैं बीते दिनों में खो गयी।

 मेरा बचपन, जो मुझे ज़्यादा याद नहीं पर जो कुछ याद है वो बेहद शांत था. आज कुछ कहते है नीरस था. न शैतानी और न ही कुछ तोड़ फोड़।  एक शांत दिमाग जो सारी बातें मान जाता था जो कुछ उसे कही जाती थी।  दादा जी के साथ उनकी बातें सुन मैं बड़ी हुई।  पापा अब उन्हें पिता जी कह कर सम्बोधित करने का दिल करता है।  मेरी ज़िंदगी के पहले मेल पर्सन।  जो मुझे बेहद पसंद है और बहुत अच्छे लगते है।अच्छा लगना और बेहद पसंद होना दोनों अलग भाव है। उनकी बातें, उनका ज़िन्दगी को देखने, समझने का तरीका मुझे पसंद है।  मैं उनके साथ रहना चाहती हूँ।  मजबूरी सिर्फ मेरे गाँव में सोर्सेज की कमी ही नहीं है बल्कि एक हद तक मेरा और मेरे पिता जी के विचार में मतभेद भी है।  मैं आज खुद को एक इंसान मानती हूँ एक स्त्री होने के पहले।  पर वो आज भी मुझे एक लड़की, जिसकी जिम्मेदारियां है उन पर और जिनको वो भली भाति पूरा करना चाहते है।  वो गलत भी नहीं है।  यह हमारे समाज की ही बताई रीति है जिन्हे वो फॉलो कर के एक अच्छा पिता बनना चाहते है।  कि मेरे लालन पालन पर कोई सवाल न उठा सके। और इसी वजह से वो मुझे खुद से दूर भेजे है।  ये लिखते लिखते भी मेरे मन में डर आ रहा है कि ये कोई मेरे परिवार का पढ़ न ले , वरना वो यही सोचेगा और कहेगा कि फला की बेटी पता नही क्या ही कर रही है शहर में।  खैर, जो मुझे ज़्यादा परेशान नहीं करती उन बातों से दूरी बनाते हुए उन बातों पर आते है, जिसके बारे में मैं कह रही थी. क्या मेरा बचपन, ना वो तो कुछ  ख़ास याद ही नहीं है और जो याद है वो मेरे भाई बहनो के बारे में है। मैं बात कर थी डर के बारे में किसी अपने का हमे छोड़ जाने का डर।  मैंने कारण बताया मेरी कमियां। क्या ये डर लाज़मी है।  ये तसल्ली वाली बात है कि माँ बाप हमे छोड़ कर नहीं जायेंगे पर वो इंसान जो आपके साथ रहता हैं आपकी खूबियों से रूबरू हो आपको हर दिन मिलने वाले चेहरे में से एक अच्छा इंसान समझ आपके साथ चलने का निर्णय लेता है. तो वो कुछ बेहतर ही चाहेगा अपने लिए।  ईगो गुस्सा या कोई ऐसी आदत जो आपके अंदर हो आपके नेचर का हिस्सा हो पर बुरी हो उसे खत्म करना या कुरंबान करना कोई गलत कदम तो नहीं।  इसके लिए हमारे माता पिता भी कोशिश करते हैं। उस इंसान के लिए इन कमियों को हटाना एक बेहतर उपाय है जिसमे हमारा आपका ही फायदा है. आपकी तबियत भी खुश और सीरत भी।  और अपने लोग अपने पास।  गलत वो है जब हम अपनी कमियां नहीं अपनी कुछ तरीकों को कुर्बान करते है इन रिश्तों के नाम, वो भी इस तर्ज पर कि  वो किसी को मंज़ूर नहीं पसंद नहीं।

 मैं तो प्रवचन सा देने लगी। वैसे भी आज कल बाबा लोगो के दिन अच्छे नहीं चल रहे अपने देश में। हाल की खबर से तो यही लगता है।  खैर, जब मैंने ये पेज लिखना शुरू किया था तो डर था मन में पर आखिरी पड़ाव तक डर जा चुका है। अब सुधार ज़्यादा भा रहा है।  हाँ, थोड़ा मुश्किल है पर सौदेबाजियां होने लगती है तो उस अपने को अपने साथ और पास रखने के लिए कुछ मोहलते खुद को दे देनी चाहिए इससे पहले की किसी बहस में उससे मांगनी पड़े।  जैसी मैं अपने माँ पापा से आये दिन मांगती रहती हूँ  अपनी ज़िन्दगी थोड़ी उनके हिसाब से और ज़्यादा मेरे हिसाब से चलते रहने के लिए।  क्युकी जीना आखिर मुझे ही है तो वही रहे मेरे आस पास जो मुझे और जिन्हे मैं भाती  हूँ।



Comments

Popular Posts