१०० रूपए का आधार कार्ड
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आधार कार्ड क्या है, क्यों है, किसलिए बनाना ज़रूरी है, अब ये बताने की ज़रूरत नहीं है किसी को। पर बनता कैसे है, आज भी ये सवाल है। १०० रुपये का आधारकार्ड.... मिल रहा है। हम खुद बनवाए है अपना अभी पिछले हफ्ते। ऐसा मेरे छोटे भाई ने मुझे ये समझाते हुए बताया की क्यों परेशान हो रही हूँ। बाजार में एक कमरा है छोटा सा चौराहे के कोने में। वही एक आदमी बैठता है। १०० रुपये दो और रसीद ले लो। यहाँ मैं एक बात स्पष्ट कर दूँ कि रसीद आधार कार्ड बन जाने की पुष्टि की एक पावती है कि फला व्यक्ति का कार्ड बन गया। और इसमें आपकी फोटो और सारी जानकारी छपी प्राप्त होगी। यह पावती आधार कार्ड के मिलने तक उसके स्थान पर प्रयोग में लाया जाता है। और इस प्रिंटआउट में किसी प्रकार के पैसा या चार्जेज लेने का वर्णन नहीं दीखता है। खैर, छोटा भाई आगे की रेट लिस्ट बताते हुए कहता है, बनने को तो २० में भी बन जायेगा पर वो तीन दिन बाद रसीद देता है। थोड़ा रिस्की है दीदी। मनो मेरी बात, चलो कल तुम्हारा आधारकार्ड तुरंत बनवा देता हूँ, वो भी अच्छी फोटो वाला। तभी एक काका आये. अधेड़ उम्र के है। गाँव में घर से कुछ दूरी पर रहते है। हमारी बात सुन रहे थे तो छोटे भाई की बेवकूफी भरी बातें सुन गुस्से को रोक न पाये। और हमारे पास आ गये. उसे गुस्से में लताड़ते हुए बोले, पागल वागल हो क्या? तुम लोगो को कुछ पता तो रहता नहीं है। बस बाप माई का पैसा उड़ाओ। १०० रूपया देकर ये आधार कार्ड बनवाए है, तनिक देख लो इन्हे। अरे बकलोल, वही गाँव के पीछे एक आदमी पचास में बनाता है। एकदम सही और रसीद भी कुछ घंटा बाद दे देता है। मज़ाक उड़ाते हुए बोले बताओ बाप नेता है और बेटवा १०० में अधार कार्ड बनवा रहा है। अरे तुम्हारा तो फ्री में हो जाना चाहिए। छोटा भाई अपनी बेवकूफी और ५० रूपये के नुक्सान को समझते हुए बुझे मन से बोला, तो क्या करते ? मेरा पहले फ्री ही बना था। सरकारी लोग जब आये थे। पर वो आया ही नहीं। तो दुबारा बनाने की लिया बोला हम को। चौराहे पे बना रहा था तो हम चले गए। काका खुद की जानकारी पे मूछ ऐंठते चले गए, छोटा भाई ५० रुपये के लिए दुखी हो रहा था और मैं इन लोगो को सुन कर और देख कर shocked थी।
तब तक घर के और लोग आ गए और आस पास वाले भी। शाम का वक़्त था, बैठक बाजी का समय. और आज टॉपिक पहले ही मिल गया था। आधार कार्ड वो भी १०० रुपये का। ५० रुपये के नुकसान के साथ। मैंने चौंक कर कहा भैया ये फ्री में मिलता है। इसका कोई पैसा नही लगता। ये पहचान पत्र है आपका। आपका अधिकार है। सरकार की ड्यूटी है। इसके पैसा लेना गलत है। मेरा इतना सीधा बोलना वह बैठे सभी बड़े लोगो कई जांनकारी पे प्रश्न करना सा हो गया। बोले हम जानते है। बेवकूफ नहीं है हम सब। पर क्या करे? कितने सारे लोगो का कार्ड आया ही नहीं। इन सब में तुम बहुत पीछे हो अभी। हर बात पे आँख- भौ सिकुड़ने लगती है। १०० रुपए देना ज़्यादा असान है। कौन दौड़े रोज़ DM और सरकारी अफसरों के दफ्तर में? सुनते है ये सब? अपना धंधा पानी छोड़ आदमी ये करेगा तो खायेगा क्या ? कार्ड बनाना ही केवल काम नहीं है, बिटिया। हम मानते है तुम सही कह रही हो। पर इतना सवाल करोगी तो कभी आगे नहीं बढ़ पाओगी। इन्ही सब में रह जाओगी। पढ़ तो ली तुम पर बहुत पीछे हो भाई अभी तुम। मैंने आखिर में इतना कहा कि कल जो आधार कार्ड का शिविर लग रहा है उसमे पैसे नहीं लिए जायेंगे। सब मेरी बात मान गए।
इस पूरी बात चीत में क्या सही, क्या गलत का फैसला करने का जिम्मा मैंने नहीं लिया। पर हाँ, गलती कहाँ है ये जाना ज़रूरी है। आधार कार्ड बनाने का ठेका लोकल, 18+, computer, और १२वी पढ़े हुए युवको द्वारा कराया जा रहा है। एक अच्छा तरीका है लोकल skilled labor को utilize करने का। अब ये लोग २० रूपए लेते है जहाँ लोकल नेता थोड़ा ईमान दार है और मैक्सिमम १०० तो है ही मार्किट रेट। जो सरासर गलत है। ठीक, हम अपना काम धंधा छोड़ कर रोज़ दफतरों के चक्कर नहीं काट सकते। पे क्या हम एक कागज़ पर लिख कर दस्तखत कर एप्लीकेशन नहीं डाल सकते की इतना सारे लोगो का कार्ड नहीं आया है? फिर से शिविर लगवाया जाये। या फिर पैसा नहीं दिया जाये। और अगर हम ऐसा करते है तो सरकार को या अफसरों को बेईमान कैसे कह सकते है हम। जो हमसे पैसे ले रहे है वो हमारे बीच के ही नेवयुवक है,कोई सरकारी मुलाज़िम नहीं। सरकार awareness के लिए टेलीविज़न रेडियो न्यूज़ पेपर हर जगह advertisement दे रही है। फिर भी हम इन पहलुओं से अछूते है। क्या अब पहले की तरह नगाड़े पर सुचना दी जाये गाँव के हर चौराहे पे। आज मैं सरकार की नीतियों और उन के execution and implementation की कमियों से नहीं बल्कि हमारे आप में भ्रष्टाचार के प्रति आ रही असंवेदनशीलता से दुखी हूँ। भ्रष्टाचार हमारा culture बनता जा रहा है।
अगर इसे पीछे होना कहते है तो आपकी परिभाषा के हिसाब से मैं पीछे हूँ। पर मैं सवाल करुँगी और उसका जवाब भी खोज निकालूंगी। जो बीमारी नयी जनरेशन को लग रही है इसके बाद सरकार से पहले खुद में संशोधन करने की ज़रूरत है। आज १०० रपये का पहचान पत्र मिल रहा है, १०,००० म डिग्र्री और २ लाख में D लेवल की नौकरी। ये तो है corruption सबसे निचले स्तर पर। और उपर तो हर काम करने का अलग से खर्च लगता है।, जिसे इज़्ज़त से "service tax" कहते है सरकारी बाबू लोग। और जो इससे ऐतराज़ करे उसे सनकी और बेवकूफ कहते है। दिल्ली में जनतंत्र के नए उदहारण से और इस जनादेश से कम से कम तर्क वितर्क में तो ये "सनकी" लोग औरों को चुप करने लगे है। आगे देखिये क्या क्या होता है इन MAKE IN INDIA कल्चर में।आसार तो अच्छे नहीं है, ये कह कर कुछ नहीं होगा। आसार बनाने होंगे। तो कछु करियेगा भी या बस चाय पीते पीते सरकार को गरियेगा ही। politically incorrect language ज़्यादा appeal करती है आज कल लोगो को।
Comments
Acchhi baat hai...pura time lijiye aur life line aur extra time ke options bhi try kr sakte hai..keep commenting till then.
:-)
":-p" ye tabhi use krte hai jb lagta hai kuch sahi nhi hua ya kiya.
aise hi sneh banaye rakhe... khush rahe, muskurate rahe.
मेरा आधार डाक से नहीं मिला,नेट से download करना पड़ा.UIDAI को शिकायती मेल भेजा तो बताया कि आपका आधार नवंबर में ही डाक से भेजा जा चुका है.50 प्रतिशत लोगों को डाक से आधार प्राप्त नहीं होते.
सुंदर प्रस्तुति.हालांकि गूगल द्वारा दिया गया इमेज वास्तविक आधार से अलग है,इसमें चिप नहीं होता.
नई पोस्ट : ईमान बिकता नहीं
adhar ka na milna logo ki shikayat ka hissa ban chuka hai. main swayam adhar ka intzaar kar rahi hun.
इसमें कुछ कमियां है इसमें आधिकारिक स्तर पे करना होगा जैसे बहुत से लोगो का आधार बना हुआ है लेकिन प्राप्त नहीं हुआ इसका जबाब आप को डाक विभाग से मिलगा उनका कहना है की आधार की प्राप्ति भगवान भरो से है क्यों इसका मेहनताना उन्हें नहीं मिलता है सच में वो लोग खुशकिस्मत है जिन्हें डाक से आधार प्राप्त हो गया है
किसी सज्जन व्यक्ति ने गूगल से लिए गए आधार की फ़ोटो पे कुछ कहा है तो ये बात भी बताना चाहता हूँ की पहले सरकार वही वाला आधार लाना चाहती थी जो की भारत की जनगड़ना 2011 पे थी उसमे ऐसा आधार प्राप्त होता लेकिन किसी कारन वश अब वो नहीं हो रहा है अब साधारण ही मिल रहा है