आज क इस दौर में, हंसी बड़ी महंगी होती जा रही है।  दुःख के कारण गिनने से भी ऊपर है। इन सब में मेरी कुछ बातें मेरे साथी से.… आपसे…

हो मग्न बड़े तुम ओ साथी
क्या मदिरा पान में ही गम था?
या भुला न पाये तुम उसको
जो तेरी परछाई में कम था
या ये मदिरा का प्याला
डूबा ले गया और भीतर
या कलियों की बगिया में
देख  लिया तुमने गुंजन
हुआ क्या अभिशापित कोई
पवित्र विचारो का बहरूपी
या संयम खोने का
आघात हुआ तुम पर
कि जिस प्याले में सब खोते है
वो बेचैन हो उठा तुझे  पाकर
तू मग्न हुआ उसे पी कर

क्या फिर से सरहद पे गोली की आवाज़ तुझे भी आई है
क्या फिर अध भूखी माँ से पेट भर हसी सुनाई है
उसका बच्चा जान सके
हसना भी  एक कुछ होता है
उसकी लाचारी में थोड़ा सा मलहम होता है
सिखा रही है वो उसको
कि कल जब मैं गिर जाउंगी
तू भी मुझको ऐसे ही हँसा के एक मौत सुला देना
जैसे मैं तुझको बीते रात
हर रोज़ सुलाया करती हूँ।

या सुन ली तूने वो पीड़ा
कैसे मरते है हम हर दिन
दुनयावी दिखावो से
भ्रष्ट पड़े समाज में रोशन उजालो से
ये तेज़ चमक ऐसी है
जो मुझे तुझे झुलसा देगी
आई थी रॉशन करने
पर ये हमे अँधा बना देगी

तेरे ये आंसू माँ की तकलीफो से तो नहीं ?
रुला रही उसको दुनिया
हम मार रहे उसको
उस पर जीते हम
हम ही मार रहे उसको
लाख जतन हो जाने पर भी
कुछ न बदल पाया अब तक.…
क्या यही तेरी उदासी है
आंसू दुःख जताने का
निकल मदिरालय से तू
कान दे सुदूर वहां
जहां हर दिन एक तबका लड़ता है
खुद थोड़ा ही सही बदलता है
तेरे ऐसे रो लेने
कुछ नहीं बदलने वाला है

चल आ थोड़ा मुस्काते है
पेट भर हसी खा कर
सो जाते है
क्या पता कब
घर छोड़ निकलंना पड़ जाये
अपनों की बेहतरी में
कब अपनों को खोना पड़  जाये

क्या पता साथी कब
उनके डर से अपना पता बदल जाये
सीरिया के हम कब हंगरी
का पता बदल जाये

चल उठ साथी
चल थोड़ी हसी बनाते है
हो गयी है ये महंगी अब
ये भी कल 'बॉन्ड' न बन जाये
खरीद के भी न मिल पाये
इससे पहले चल थोड़ी हसी
कमाते है
चल थोड़ी हसी लुटाते  है।

Comments

बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना.
Unknown said…
It's said that a person's feelings can be judged by his actions rather than his words......but after reading these blogs......I seriously think that the sentence needs to be rewritten again.....cuz both the understanding as well as the feelings of the person can be clearly seen in these words.....
dhanyawaad aapka...

muskurate rahe...milte rahe :-)
बेहद सुंदर रचना की प्रस्‍तुति। मेरे ब्‍लाग पर आपका स्‍वागत है।
Satyendra said…
Idea achha hai par padhyansho mein sambandh betuka laga. Ya yah kah lo ki samajh mein kuchh kam ayi hai.
Congratulations aapke prayas ke liye.
Swagat hai...
Aapka comment mahatve rakhta hai...dhanyawaad
Silsila banaya nhi bs jo aya use likhti gayi... ye unhi jaisa hai jaise hum har din akhbaar me kuch bhi netuka sa ek hu page pe padh jate hai

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