बेनाम से ख्याल
इनकी आँखों के तले मश्वरा न हुआ होता
रात अँधेरी न होती तो काला क्या होता
जो नारंगी गोल गोल था दिन में ऊपर
वो सूरज न होता
तो क्या चाँद दिन का सितारा होता
गैरो की महफ़िल में सजाते रहे रंग
श्रृंगार के इतने प्रकार न होते
तो हँसने हँसाने का गुज़ारा क्या होता
किसी हाफ़िज़ से तालीम लेकर आये है
वर्ना कारीनों पे पाजेबो के जुमरूओं का इशारा क्या होता
मोहब्बत आशिक़ी गर होती
इबादत मोहब्बत गर होती
इश्क़ का मजहब औ क़ुरान के पन्नो का नज़ारा क्या होता
रात अँधेरी न होती तो काला क्या होता
जो नारंगी गोल गोल था दिन में ऊपर
वो सूरज न होता
तो क्या चाँद दिन का सितारा होता
गैरो की महफ़िल में सजाते रहे रंग
श्रृंगार के इतने प्रकार न होते
तो हँसने हँसाने का गुज़ारा क्या होता
किसी हाफ़िज़ से तालीम लेकर आये है
वर्ना कारीनों पे पाजेबो के जुमरूओं का इशारा क्या होता
मोहब्बत आशिक़ी गर होती
इबादत मोहब्बत गर होती
इश्क़ का मजहब औ क़ुरान के पन्नो का नज़ारा क्या होता
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