वो क्यों नही समझता?
ये कह कह के
पूरी रात रात के संग जागी।
और पूछा उससे वो क्यों नही समझता?
रात गली में अंधियारा ढूंढ ज्यूँ आंख लगाए
में फिर से पलट पूछ लूं
वो क्यों नही समझता?

वो बोली जाने दे,
चल तू मेरे संग आ
मैं तो हर रोज़ तेरे संग आती हूँ
जब तू उस संग बिस्तर पे
पड़ जाती है
दोनों एक चद्दर में
वो तेरी आँखों से नाभि तक भूगोल मापता
उसके एहसास से तू उसका इतिहास पढ़ती
जब वो बिना कहे
तेरे स्तनों पे अपना नाम करोता है
क्या वो तब तुझे समझता है?
तेरे आंसू से वो डरता है
तेरी इस रात से घबराता है
वो बहुत कमजोर है
तुझ तक वो पहुच ही नही पाता है।

इसका क्या मतलब?
क्या वो मुझे नही समझता?
मैं उसे आसमान में लिखना चाहती हूँ,
अपने होंठों से उसको सहला के
माँ का स्पर्श देना चाहती हूँ।
मैं उस संग हर दरख़्त
हर कली खिलना चाहती हूँ
मैं उससे प्यार करना चाहती हूं।
वो मुझे दुनियावी नामों में संजोता है
में उसे उस नूर तलक सजा के
खुद बाग़ी बनना चाहती हूँ।
मैं हर पहाड़ हर नदी हर पत्ती
हर झुरमुट हर शंख
एक पता लिखना चाहती हूँ।
मैं उसे अपना हर एक हिस्सा देना चाहती हूँ
पर वो मुझे पागल कहता है।
उससे न कह पाने की
उसकी नज़र में खुद की समझ न पाने की
एक कसक है मुझमे
उसके नाभि से सटे बालों से खेलते
कई बार सोचा कि
वक़्त को पैमाना बना मैं इश्क़ में डूब जाउं
वो बेख्याल किसी सजी गुड़िया में
कुछ राजनीति के एरिस्टोटल को खोजता मिला।
उसे सीधी अपनी दुनिया समझती है
मै अभी के लिए उसका हिस्सा हूँ
पर मैं अपना तख्त चाहती हूं
एक ताजमहल नही
मज़ार पे एक नज़र चाहती हूँ।
मैं उसके संग पूरी दुनिया का हर हिस्सा छूना चाहती हूं
जो उसमें समाया है
मैं सच उसके सपनो की रानी बनना चाहती हूँ।
कभी वो चाहत मुझे दिखे
कि वो तड़पता है मेरे लिए
मैं वो एहसास वो रबाब चाहती हूं।
वो मेरे लिए मेरी कोख़ से अजन्मा लाड़ है
मैं उसके लिए न जाने क्या बनना चाहती हूं
जिसे वो कभी न भूले
मैं खुद को उसकी समझ बनना चाहती हूँ।

मेरी रात सो गई
मेरे कंधे सिर टिकाये
धीरे से उसने चादर फैलाया
और मुझे भी बुला लिया अपनी बाहोँ में
वहां हम दोनों
एक चद्दर में लिपटे
एक दूसरे के हाथ को लपेटे
सो गए थे
रात भी वही सो गई थी।

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